बिना फ्लैट का पजेशन दिए मेंटिनेंस मांगने पर दिल्ली हाई कोर्ट ने रोहिणी, सेक्टर 14 स्थित तुलसी अपार्टमेंट की संत तुलसीदास कोऑपरेटिव ग्रुप हाउसिंग सोसायटी को फटकारा है. कोर्ट ने हैरानी जताई कि 33 साल से फ्लैट का कब्जा मिलने का इंतजार कर रहे याचिकाकर्ता से सोसायटी मेंटिनेंस चार्ज कैसे मांग सकती है. चीफ जस्टिस मनमोहन की अध्यक्षता वाली डिविजन बेंच ने निर्देश दिया कि सोसायटी सात दिनों के भीतर याचिकाकर्ता को उनका फ्लैट सौंपे. हाईकोर्ट ने साफ किया कि फ्लैट का पजेशन मिलने के बाद ही मेंटिनेंस के मुद्दे पर दोनों पक्ष आपस में चर्चा करें.
संत तुलसीदास कोऑपरेटिव ग्रुप हाउसिंग सोसायटी के खिलाफ हाईकोर्ट गए हेमंत कुमार अग्रवाल की मां ने सोसायटी में 33 साल पहले फ्लैट खरीदा था. उन्हें फ्लैट का कब्जा 1991 में मिलना था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. फ्लैट मिलने का इंतजार करते-करते हेमंत की मां का देहांत हो गया. मां के देहांत के बाद सोयायटी की मेंबरशिप हेमंत के नाम ट्रांसफर हो गई. सोसायटी ने फ्लैट का कब्जा तो फिर भी उनको नहीं दिया, लेकिन मेंटिनेंस चार्ज और अन्य खर्चों के भुगतान के लिए नोटिस जरूर थमा दिया.
क्या था प्रमुख मुद्दा?
मामले का प्रमुख मुद्दा यह था कि क्या ग्रुप हाउसिंग सोसायटी बिना फ्लैट का पजेशन दिए मेंटिनेंस चार्ज और अन्य खर्चों की मांग कर सकती है. दूसरा पहलू यह था कि क्या सोसायटी मुकदमेबाजी में हुए खर्च की वसूली याचिकाकर्ता से कर सकती है. अदालत के पहले भी कई फैसले याचिकाकर्ता हेमंत के पक्ष में आए थे. हाई कोर्ट से याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसले आने के बावजूद उन्हें फ्लैट नहीं सौंपा गया. रजिस्ट्रार कोऑपरेटिव सोसायटी के एडवोकेट ने कोर्ट को बताया कि 29 अप्रैल, 2024 को सोसायटी को नोटिस जारी कर जवाब मांगा गया था. हाई कोर्ट ने 6 मई, 2024 को सोसायटी के प्रेसिडेंट और सेक्रेटरी को व्यक्तिगत रूप से पेश होने का निर्देश दिया था.
कोर्ट के आदेश को भी नहीं माना
संत तुलसीदास कोऑपरेटिव ग्रुप हाउसिंग सोसायटी पर आरोप है कि उसने हाई कोर्ट के 29 नवंबर, 2023 के आदेश का पालन नहीं किया और 13 मार्च, 2023 को 4,33,991 रुपये का अवैध डिमांड नोटिस भेज दिया, जिसमें नवंबर 2016 से मेंटिनेंस चार्ज, ब्याज, लिटिगेशन चार्ज, और पार्किंग चार्ज शामिल थे. याचिकाकर्ता ने दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) पर भी कोर्ट के आदेशों की अवहेलना करने का आरोप लगाया था. हाईकोर्ट ने अब सोसायटी के रवैये को गलत बताते हुए कहा कि बिना फ्लैट का कब्जा दिए, वह याचिकाकर्ता से मेंटिनेंस चार्ज नहीं मांग सकती. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि दोनों पक्षों के हितों की समान सुरक्षा सुनिश्चित करने के बाद ही सोसायटी मेंटिनेंस के कानूनी अधिकारों का इस्तेमाल करने के लिए स्वतंत्र होगी.