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इतना खतरनाक वायरस जो 100 में से 90 की ले लेती है जान, रवांडा में 6 की मौत से दहशत का नया दौर शुरू

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Dangerous virus Marburg: क्या आप यकीन के साथ कह सकते हैं कि कोरोना का दौर खत्म हो गया है? कतई नहीं. सिर्फ एक महीने पहले की बात करें तो यूरोप और अमेरिका में कोरोना के मामले कई गुना बढ़ गए थे. पर मुश्किल यह है कि कोरोना वायरस का जब से प्रकोप शुरू हुआ तब से एक पर एक नए वायरस ने भी तहलका मचाना शुरू कर दिया है. कभी इबोला तो कभी मंकीपॉक्स तो अब मारबर्ग. चिंता की बात यह है कि मारबर्ग इतना डेंजर वायरस है कि इसमें 100 में से करीब 88 लोगों की जान चली जाती है. रवांडा में इस बीमारी का नया दौर शुरू हो गया जिसके कारण अब तक 6 लोगों की जान जा चुकी है. इस वायरस के संक्रमण से तेज बुखार आता है और तेज ब्लीडिंग शुरू हो जाती है.

बीबीसी के मुताबिक रवांडा के हेल्थ मिनिस्टर ने बताया है कि 20 लोग अब तक इस बीमारी से संक्रमित हैं और कम से कम 200 लोगों के संक्रमित लोगों के निकट संपर्क में आने का अंदेशा है.उन्होंने लोगों से अपील की है कि वे संक्रमित लोगों के फिजिकल कॉन्टेक्ट में न आए और बीमारी पर काबू पाने के लिए लोगों की मदद करे. यह वायरस उसी कुल का है जिस कुल का इबोला है.

क्या है मारबर्ग वायरस
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक मारबर्ग तेजी से संक्रमित करने वाला वायरस है जिसमें बुखार और ब्लीडिंग के साथ ही इंसान की मौत हो सकती है. जब किसी एक व्यक्ति में यह वायरस संक्रमित होता है तो उसके संपर्क में आने से दूसरे को भी हो सकता है. इसमें संक्रमित व्यक्ति के किसी भी तरह के फ्लूड या कटे हुई स्किन, ब्लड, आदि के संपर्क में आने से दूसरे व्यक्ति को हो सकता है. अगर संक्रमित व्यक्ति से फ्लूड या ब्लड कहीं गिर जाता है और फिर उससे कोई सट जाता है तो इससे भी यह बीमारी हो सकती है.

कहां से आई यह बीमारी
1961 में सबसे पहले मारबर्ग का मरीज जर्मनी के फ्रेंकफर्ट में मिला.करीब-करीब इसी समय मारबर्ग के मरीज बेलग्रेड और सर्बिया में भी पाए गए. दरअसल, यूगांडा से साइंटिफिक काम के लिए अफ्रीकन ग्रीन मंकी को लाया गया था. वहीं लेबोरेटरी से इसी बंदर से यह वायरस फैला. इसके बाद यह अफ्रीका के कई देशों में फैल गया. इसके बाद यह थम गया लेकिन 2008 में फिर यूगांडा की यात्रा पर गए एक शख्स को हो गया. 2012 में मारबर्ग बीमारी के कारण यूगांडा में 15 लोगों की, अंगोला में 227 लोगों की और कांगो में 128 लोगों की मौत हो चुकी है.
इस बीमारी के लक्षण
क्लीवलैंड क्लीनिक के मुताबिक जब मारबर्ग वायरस किसी को संक्रमित करता है तो पहले फेज तक पहुंचने में पांच से 7 दिन का समय लगता है. इसमें तेज बुखार और ठंड लगता है. इसके साथ ही सिर में तेज दर्द, कफ, मसल्स में दर्द, ज्वाइंट पेन, गले में खराश और स्किन पर रैशेज आ जाते हैं. एक या दो दिन के बाद ऐसा लगता है कि ये सारे लक्षण कम हो गए लेकिन जल्द ही दूसरा फेज शुरू हो जाता है और इसमें छाती और पेट में बहुत दर्द करने लगता है. डायरिया लग जाता है और उल्टी होती है. अचानक वजन गिरने लगता है. स्टूल से खून आने लगता है. इसके बाद नाक, मुंह, आंखें और वेजाइना से खून निकलने लगता है. अगर तुरंत मेडिकल अटेंशन नहीं हुआ तो रोगी की मौत हो जाती है.

क्या मारबर्ग की कोई दवा है
मारबर्ग की कोई दवा या वैक्सीन नहीं है लेकिन खून रोकने के लिए कई दवाइयां दी जाती है, इसके साथ इम्यून थेरेपी से भी इसे ठीक किया जाता है. दर्द की दवा भी दी जाती है. वहीं मरीज को ऑक्सीजन की जरूरत होती है. हालांकि इन सबके बावजूद इस बीमारी में मौत का प्रतिशत 88 है. जो लोग इस बीमारी से ठीक भी हो जाते हैं, उन्हें लंबे समय तक कई तरह की दिक्कतें होती रहती है. मसल्स में दर्द और हेयर लॉस इसके बाद में होने वाले प्रमुख लक्षण है.

क्या इससे बचा जा सकता है
जो लोग जानवरों की सेवा में लगे हैं या जो लोग खदान में काम करते हैं वहां से चमगादड़ के माध्यम से यह वायरस इंसानों को संक्रमित कर सकता है.इसलिए जब संक्रमण शुरू हो तो इन कामों में बेहद सतर्कता बरतने की जरूरत होती है. जहां आप काम करते हैं वहां प्रोपर तरीके से मास्क, गोगल्ज, एपरन, ग्लव्स आदि पहनकर रखें. अगर कहीं संक्रमण होता है तो इसके तुरंत बाद कंडोम का इस्तेमाल अवश्य करें. वहीं अगर कोई इस संक्रमण से बच जाता है तो ठीक होने के बाद उसके वीर्य में बहुत दिनों तक वायरस जिंदा रहता है. इसलिए यौन संबंध बनाने से पहले डॉक्टर से संपर्क करना जरूरी है.