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किरायेदार के लिए रेंट एग्रीमेंट नहीं बनवाएं लीज एंड लाइसेंस, कभी नहीं होगा विवाद का टंटा, 100% सुरक्षित रहेगा मकान

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आम तौर पर संपत्तियों में ​निवेश के दो उद्देश्य होते हैं. पहला कि आप उसे स्वयं के इस्तेमाल के लिए खरीदना चाहते हैं और दूसरा कि संपत्ति को मौजूदा समय में खरीद लिया जाय और जब पैसों की आवश्यकता पड़े तो उसे बेचकर लाभ कमाया जाय अथवा किराये पर चढ़ाकर हर महीने एक सुनिश्चित आमदनी सुरक्षित की जाए. किराये पर देना संपत्तियों के जरिये आय हासिल करने का सबसे अच्छा उपयुक्त साधन है, लेकिन कई बार कुछ ऐसे किरायेदार भी मकान मालिकों से टकरा जाते हैं जो विवाद का कारण बन जातें. अगर मकान मालिक वहां नहीं रहता तो संपत्ति पर मालिकाना हक की दिक्‍कत भी हो जाती है. इस विवाद से बचने का ही तरीका आज हम आपको बताएंगे.

मकान मालिकों के हितों की सुरक्षा के लिए ही ज्‍यादातर मामलों में रेंट एग्रीमेंट बनवाया जाता है. हालांकि, इस एग्रीमेंट के बावजूद बड़े पैमाने पर किरायेदार से मकान मालिक की हितों की पूरी तरह रक्षा नहीं हो पाती. ऐसे में किसी भी विवाद से बचने के लिए अब मालिकों ने ‘लीज ऐंड लाइसेंस’ एग्रीमेंट का विकल्प अपनाना शुरू कर दिया है. लीज ऐंड लाइसेंस भी काफी हद तक रेंट अथवा लीज एग्रीमेंट या किरायानामा की तरह ही होता है, बस इसमें लिखे जाने वाले कुछ क्लॉज बदल दिये जाते हैं. प्रॉपर्टी मामलों के एक्‍सपर्ट और ओरम डेवलपमेंट्स के सीएमडी प्रदीप मिश्रा से हम जानते हैं कि लीज एंड लाइसेंस कैसे बनता है और इसके क्या लाभ हैं.

पूरी तरह मकान मालिक के हित में
चाहे रेंट या लीज एग्रीमेंट हो या फिर लीज ऐंड लाइसेंस इन सभी दस्तावेजों को एकतरफा रूप में मकान मालिक के हितों की रक्षा में बनाया जाता है. दोनों ही दस्तावजों में स्पष्ट तौर पर उल्लेख कर किया जाता है कि संपत्ति का स्वामी उसके किरायेदार को नियत समय के लिए रिहाइशी अथवा व्यावसायिक इस्तेमाल करने को दे रहा है. समय की यह अवधि 11 महीनों से लेकर कुछ वर्षों तक हो सकती है. इसमें यह भी लिखा जाता है कि यदि किरायेदार रिहाइशी इस्तेमाल के लिए संपत्ति ले रहा है तो उसका इस्तेमाल व्यावसायिक गतिविधियों के लिए नहीं किया जा सकेगा. साथ ही तय की गई अवधि पूरी होने के बाद यदि एग्रीमेंट अथवा लीज ऐंड लाइसेंस को आगे नहीं बढ़ाया जाता तो उन परिस्थितियों में किरायेदार को संपत्ति खाली करनी होगी.

दोनों में क्‍या है मेन अंतर
रेंट एग्रीमेंट में मकान मालिक को ‘लेसर’ जबकि किरायेदार को ‘लेसी’ बताया जाता है तो वहीं लीज एंड लाइसेंस में ‘लाइसेंसर और लाइसेंसी’ लिखा जाता है. रेंट एग्रीमेंट को आम तौर पर रिहाइशी इस्तेमाल की संपत्तियों के लिए 11 महीने की अवधि के लिए बनवाया जाता है तो लीज एग्रीमेंट का इस्तेमाल 12 या इससे ज्यादा महीने की अवधि के लिए बनाया जाता है. साथ ही इसे सामान्यत: कॉमर्शियल प्रॉपर्टीज को किराये पर देने के लिए उपयोग में लाया जाता है. इसके उलट लीज एंड लाइसेंस को 10-15 दिन से लेकर 10 साल की अवधि के लिए बनवाया जा सकता है. खास बात यह है कि इन सभी दस्तावेजों को स्‍टांप पेपर पर नोटरी के जरिये बना सकते हैं. इसके अलावा यदि किराये की अवधि 12 या इससे अधिक समय की हो तो उसे कोर्ट से रजिस्टर्ड भी करवाना जरूरी है.
दोनों में कौन सा दस्तावेज बेहतर
रेंट या लीज एग्रीमेंट की तुलना में लीज एंड लाइसेंस ज्यादा बेहतर माना जा सकता है, क्योंकि इसे 10 से 15 दिन की न्यूनतम अवधि के साथ ही 10 साल जैसी लंबी अवधि के लिए बनवाया जा सकता है. इसके साथ ही इसमें स्पष्ट उल्लेख कर दिया जाता है कि लाइसेंसी यानी कि किरायेदार किसी भी रूप में संपत्ति पर अपना हक नहीं जताएगा और न ही मांगेगा. ऐसा होने से मकान मालिक के पास उस संपत्ति का हक बरकरार रहता है, भले ही कुछ समय के लिए वह किरायेदार के कब्जे में हो.
इसमें एक और अच्छी बात यह है कि जब दो पक्ष आपसी सहमति से रेंट या लीज एग्रीमेंट साइन करते हैं और दोनों पक्षों में से किसी एक की मृत्यु हो जाने पर उनके सक्सेसर यानी वारिस आपसी सहमति से उस एग्रीमेंट को जारी रख सकते हैं. लीज एंड लाइसेंस में ऐसा नहीं है. दोनों पक्षकारों में से किसी एक की मृत्यु की स्थिति में यह स्वयं ही शून्य यानी नल एंड वाइड हो जाता है. लिहाजा आप अपनी संपत्ति किराये पर देते समय लीज या लीज एंड लाइसेंस दस्तावेज जरूर बनवा लें जिससे कि आपकी संपत्ति पर मालिकाना हक को कोई अन्य चुनौती न दे सके.