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ट्रंप की राजनीति से हैरान नहीं जयशंकर, कहा- मुझे कोई आश्चर्य नहीं, UN को लेकर भी चेताया, पढ़िए पूरा इंटरव्यू

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विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने फाइनेंशियल टाइम्स को एक इंटव्यू दिया है. उन्होंने इस इंटव्यू में कई मुद्दों पर अपनी बेबाक राय रखी. यह इंटरव्यू वैश्विक राजनीति के बदलते परिदृश्य पर रोशनी डालता है, जिसमें अमेरिका की भूमिका, भारत की विदेश नीति और एक नए विश्व व्यवस्था की संभावना पर चर्चा की गई है.

जयशंकर एक अनुभवी राजनयिक अपने यथार्थवादी दृष्टिकोण और स्पष्टवादिता के लिए जाने जाते हैं. वे ट्रंप के उदय और अमेरिका की अंदरूनी राजनीति को लेकर आश्चर्यचकित नहीं हैं, और मानते हैं कि यह बदलाव एक बहुध्रुवीय दुनिया की ओर इशारा करता है.

10 प्वाइंट में पढ़िए उनका पूरा इंटरव्यू:

जयशंकर को ट्रंप की नीतियों पर आश्चर्य नहीं हुआ, क्योंकि वे पहले से ही ट्रंप की बातों को गंभीरता से ले रहे थे. उन्होंने कहा, “ऐसा लगता है कि कुछ लोग हैरान हैं. ट्रंप वास्तव में वही कर रहे हैं जो उन्होंने कहा था. मुझे कोई हैरानी नहीं है. शायद मैंने उन्हें अधिक गंभीरता से लिया था.”
वे मानते हैं कि दुनिया एक बहुध्रुवीय व्यवस्था की ओर बढ़ रही है, जो पहले सिर्फ़ भारत का नज़रिया था, लेकिन अब अमेरिका भी इसे स्वीकार कर रहा है. उन्होंने कहा, “मैं पूरी तरह से मजाक नहीं कर रहा हूं, एक बहुध्रुवीय दुनिया पहले हमारी बात थी. अब यह अमेरिकी बात बन गई है.”
जयशंकर यथार्थवादी हैं और मानते हैं कि विदेश नीति को अतीत के कयासों पर नहीं, बल्कि वर्तमान वास्तविकताओं पर आधारित होना चाहिए. उन्होंने कहा, “मैं विदेश नीति इस तरह से नहीं चलाता कि काश ऐसा होता या काश हम वापस जा सकते या काश यह नहीं हुआ होता. यह हो चुका है.”
हेनरी किसिंजर के साथ अपने संबंधों पर जयशंकर कहते हैं कि वे उनका सम्मान करते थे, लेकिन कई मुद्दों पर, खासकर चीन पर, उनसे असहमत थे. किसिंजर थार्थवादी राजनीति में विश्वास रखते थे और उन्होंने 2023 में अपनी मृत्यु से पहले जयशंकर की प्रशंसा की थी.
जयशंकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “इंडिया फर्स्ट” नीति में विश्वास रखते हैं और एक ऐसी विश्व व्यवस्था चाहते हैं जो विकासशील देशों के लिए भी अनुकूल हो.
वे संयुक्त राष्ट्र जैसे वैश्विक संगठनों में सुधार की वकालत करते हैं ताकि वे समकालीन शक्ति संतुलन को दर्शा सकें. इंटरव्यू में वे कहते हैं, “अनियंत्रित प्रतिस्पर्धा तनाव को बढ़ाएगी और किसी न किसी तरह से लाभ को सीमित करेगी. कोई सवाल नहीं है कि एक आदेश होना चाहिए. कुछ ऐसा जो विकासशील हो लेकिन आरामदायक और स्थिर हो.”
जयशंकर का मानना है कि “शक्ति ही सही” का सिद्धांत हमेशा से अंतरराष्ट्रीय संबंधों का हिस्सा रहा है. उन्होंने कहा, “हमेशा एक तत्व था, ‘शक्ति ही सही’. मुझे लगता है कि पुराने आदेश के गुण कुछ हद तक अतिरंजित हैं. कभी-कभी जब आप वैश्विक आदेश के निर्णयों के प्राप्तकर्ता होते हैं तो आपका दृष्टिकोण थोड़ा अलग होता है.”
अपने पिता से प्रेरित होकर, जयशंकर का मानना है कि व्यक्ति को इतिहास का विश्लेषण करने के बजाय, इतिहास रचने का प्रयास करना चाहिए. बता दें कि उनके पिता एक प्रसिद्ध सार्वजनिक सेवक थे, जो भारत के परमाणु हथियार प्राप्त करने के सबसे मुखर समर्थकों में से एक थे.
वे भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा से सहमत हैं और इसे अपनी राष्ट्रवादी परवरिश का विस्तार मानते हैं. उन्होंने कहा, “मैं अपनी पार्टी की राजनीति के साथ बहुत सहज था. हम एक बहुत ही राष्ट्रवादी परिवार थे और मेरे पिता ने हमें यह सिखाया था. पार्टी की संस्कृति, सोच, वह मेरे लिए बिल्कुल भी मुद्दा नहीं था. मैं इसके साथ बहुत तालमेल में था.”
जयशंकर आगे कहते हैं कि भारत अब पश्चिम की नकल करने की मानसिकता से बाहर निकल चुका है और अपनी पहचान को लेकर आत्मविश्वासी है.