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जम्मू-कश्मीर में कांटे से कांटा निकाल रही है बीजेपी

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केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर का पहला विधानसभा चुनाव है और 10 साल बाद हो रहे इस चुनाव में मुख्य मुकाबला बीजेपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस+कांग्रेस गठबंधन के बीच है. महबूबा मुफ्ती की पीडीपी लड़ाई में पिछड़ती दिख रही हैं लेकिन सरकार बनाने में इनकी, निर्दलीय और छोटे दलों की भूमिका अहम रहने रहेगी. आतंकी फंडिंग मामले में सांसद रशीद इंजीनियर को जमानत मिलने की खबर ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव को और गर्म कर दिया है. दिल्ली की NIA कोर्ट ने राशिद विधानसभा में चुनाव प्रसार करने के लिए को जमानत दी है. इस खबर को हल्के में नहीं लिया जा सकता क्योंकि ये वही इंजीनियर राशिद हैं जो जेल में बंद होने के बावजूद लोकसभा 2024 चुनाव में बारामूला से उमर अब्दुल्ला को पटखनी दी थी.

ऐसे में जेल से बाहर होने के बाद इंजीनियर राशिद सबसे ज्यादा किसका नुकसान कर सकते हैं ये समझना इतना मुश्किल भी नहीं है. नेशनल कॉन्फ्रेंस, कांग्रेस, पीडीपी आरोप लगा रहे हैं कि बीजेपी छोटे दलों के साथ ही ऐसे निर्दलीयों को पीछे से समर्थन दे रही है जो कभी अलगावादी ताकतों के साथ थे. हालांकि इसपर पलटवार करते हुए बीजेपी ने कहा है कि अगर अलगाववादी मुख्यधारा में शामिल होने का फैसला करते हैं तो उन्हें लोकतांत्रिक प्रक्रिया में शामिल होने का मौका मिलना चाहिए.

‘अगर किसी अलगाववादी ने चुनाव लड़कर मुख्धारा में शामिल होने का फैसला किया है तो उसे इस लोकतांत्रिक अवसर से वंचित किया जाना चाहिए.’ जितेंद्र सिंह, केंद्रीय मंत्री

इस बार भी जम्मू कश्मीर में किसी एक दल को बहुमत मिलने के कम ही आसार दिख रहे हैं. मुख्य मुकाबला नेशनल कॉन्फ्रेस-कांग्रेस गठबंधन और बीजेपी के बीच दिख रही है. लेकिन असली लड़ाई इस बात की है किसे सबसे ज्यादा सीट मिलेगी? जो भी सबसे बड़ा दल बनकर उभरेगा वो छोटे छोटे दलों के अलावा निर्दलीय के साथ मिलकर सरकार बना सकता है. पीडीपी मुख्य लड़ाई से तो बाहर दिख रही है लेकिन अगर उसे 8-10 सीट भी मिल जाएं तो सरकार बनाने में उसकी भी भूमिका अहम हो सकती है.

विपक्षी दलों ये भी आरोप लगा है कि जम्मू कश्मीर अपनी पार्टी और गुलाम नबी आजाद की डेमोक्रैटिक प्रोगेसिव आजाद पार्टी बीजेपी की बी टीम है. हालांकि ये दोनों ही दल इन आरोपों को खारिज कर रहे हैं.
बीजेपी मुख्य रुप से जम्मू रीजन को टारगेट कर रही है जहां परिसीमन के बाद इस बार 6 सीट बढ़कर 43 हो गई है. बीजेपी इस रीजन की अधिकांश सीट जीतकर कश्मीर रीजन के छोटे छोटे दलों के साथ सरकार बनाने का रणनीति पर काम कर रही है. बीजेपी की इस रणनीति से नेशनल कॉन्फ्रेस और पीडीपी दोनों ही परेशान दिख रहे हैं.
नेशनल कॉन्फ्रेंस इस चुनाव को करो या मरो के तौर ले रही है. लोकसभा चुनाव में उमर अब्दुल्ला के हारने के बाद विधानसभा चुनाव में भी पिछड़ने का मतलब कश्मीर की राजनीति में नेशनल कॉन्फ्रेस की दखल काफी कम हो जाएगी. जिससे इसके भविष्य भी खतरे में पड़ सकता है. कुछ ऐसा ही हाल पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती का भी है. लोकसभा चुनाव में पीडीपी को एक भी सीट नहीं मिली और इस विधानसभा चुनाव में भी वो बीजेपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस से पीछे दिख रही है. महबूबा ने तो इस बार अपनी बेटी इल्तिजा मुफ्ती को भी चुनावी मैदान में उतार दिया है. जाहिर है इस विधानसभा चुनाव में जम्मू कश्मीर के दो प्रमुख परिवार की साख दांव पर है. इन दो परिवारों से अब तक 5 मुख्यमंत्री बने हैं और दशकों से इस परिवार का जम्मू-कश्मीर की राजनीति में दबदबा रहा है. लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव से ही इनका प्रभाव कम होना शुरु हो गया था.
जम्मू-कश्मीर की बदलती राजनीति की तस्वीर को साफ देखना है तो थोड़ा पीछे चलते हैं. 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 को खत्म कर दिया गया और साथ ही इसे केंद्रशासित प्रदेश बना दिया गया. कश्मीर घाटी में अलगाववादी ताकतों का समूह हुर्रियत कॉन्फ्रेंस अतीत में समा चुका है. सुरक्षा बलों ने आतंक की जड़ों पर बड़ा प्रहार करके उसे काफी हद तक खत्म कर दिया है. इससे जम्मू-कश्मीर की आबो हवा में ही नहीं बल्कि राजनीति में भी बहुत बदलाव आया है. वरना ऐसा कब हुआ है जब अब्दुल्ला और मुफ्ती परिवार का कोई भी सदस्य चुनाव लड़कर भी लोकसभा में पहुंचने में नाकाम रहा हो. लोकसभा चुनाव 2024 में उमर अब्दुल्ला के साथ ही महबूबा मुफ्ती को भी मुंह की खानी पड़ी थी. अनंतनाग-रजौरी सीट से नेशनल कॉन्फ्रेस के मियां अल्ताफ ने महबूबा को हराया था. लोकसभा चुनाव 2024 कई मायनों में अहम था. आर्टिकल 370 खत्म होने के बाद जम्मू कश्मीर में ये पहला बड़ा चुनाव था और इस चुनाव में लोगों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा भी लिया. इस चुनाव में बीजेपी और नेशनल कॉन्फ्रेस को 2-2 सीट मिली वहीं एक सीट निर्दलीय इंजीनियर राशिद के खाते में गई.
नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी के कमजोर होने का सबसे बड़ा फायदा छोटे छोटे दलों को होगा क्योंकि इनकी राजनिति मुख्य तौर पर कश्मीर घाटी में है. ऐसे में बीजेपी जम्मू कश्मीर में कांटे से कांटा निकालने की कोशिश कर रही है. क्योंकि एक तरफ नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी छोटे दलों या निर्दलीय को अलगाववादी होने का आरोप लगाते हैं. तो दूसरे ओर यही दल आर्टिकल 370 को हटाने, पाकिस्तान से बातचीत करने के अलावा ऐसे भी बयान देते रहे हैं जिससे आतंकियों का हौसला बुलंद होता रहा है. ऐसे में बीजेपी का दांव कितना सफल रहेगा ये तो आने वाले समय में ही पता चलेगा.