Home छत्तीसगढ़ कर्म बिना शर्त के हो नहीं सकता और धर्म के लिए कोई...

कर्म बिना शर्त के हो नहीं सकता और धर्म के लिए कोई शर्त नहीं है : प्रवीण ऋषि

17
रायपुर (विश्व परिवार)। जीवन में समस्या का मुख्य कारण है प्रमाद। साधना मिलने के बाद भी, सौभाग्य भी दुर्भाग्य बन जाता है प्रमाद के कारण। विपरीत परिस्थितियों में दुर्भाग्य भी भाग्य बन जाता है अप्रमाद से। भय समाप्त होने के बाद भी रानी कमलप्रभा ने कुष्ठ रोगियों का साथ नहीं छोड़ा। अपने राज्य की सीमा पार करने के बाद भी रानी अपने बेटे श्रीपाल के साथ कुष्ठ रोगियों के साथ चलती रही। उपाध्याय प्रवर  प्रवीण ऋषि लालगंगा पटवा भवन में श्रीपाल-मैनासुन्दरी का प्रसंग सुना रहे थे। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी।
कथा आगे बढ़ाते हुए उपाध्याय प्रवर ने कहा कि धर्म अनकंडीशनल है। वहीं कर्म कंडीशनल है। बिना कंडीशन के कर्म का बंद नहीं होता है, और फल भी नहीं मिलता है। वहीं धर्म में कोई कंडीशन (शर्त) नहीं है। न तो उम्र की पाबंदी है, और न ही परिस्थिति की। धर्म किसी भी परिस्थिति में हो सकता है। कर्म के लिए परिस्थिति, उम्र और शरीर की स्थिति देखना जरुरी है। कर्म बिना शर्त के बनता नहीं है, और बिना शर्त के फल देता नहीं है। जब आप सशर्त धर्म करते हो तो वह कर्म हो जाता है, वहीं अगर आप बिना किसी शर्त के कर्म करते हो तो वह धर्म हो जाता है। उपाध्याय प्रवर ने कहा कि कमलप्रभा और श्रीपाल 2-3 साल तक कुष्ठ रोगियों के साथ चलते रहे, इसी बीच श्रीपाल को भी कुष्ठ रोग हो गया। कमलप्रभा ने श्रीपाल को दल के साथ छोड़ा और उपचार के लिए वैद्य को ढूंढने निकल गई। यहां रानी कमलप्रभा ने तीसरी बड़ी गलती कर दी। वह चाहती तो श्रीपाल को अपने साथ ले जा सकती थी, लेकिन वह उसे छोड़कर चली गई। जाते जाते उन्होंने बताया कि यह राजा का बेटा है। रोगियों ने जब ये सुना तो उन्होंने श्रीपाल को अपने दल का राजा घोषित कर दिया। समय बीतता चला गया। श्रीपाल अब 17-18 साल का हो गया। उनका दल उज्जैन पहुंचा।
उज्जैन के राजा प्रजा पाल की दो बेटियां थीं, रुपसुंदरी और मैनासुन्दरी। दोनों बहनों में जमीन आसमान का अंतर था। रुपसुंदरी जहां जिद्दी थी, वहीं मैनासुन्दरी समझदार थी। राजा अपनी बेटियों की शादी के लिए सोच रहा था। उसने दरबार में अपनी बेटियों से पूछा कि तुम्हे कैसा वर चाहिए? उपाध्याय प्रवर ने कहा कि राजा को भरे दरबार में ऐसा सवाल नहीं पूछना चाहिए था। यह अविवेक है। सवाल सही भी होगा तो भी जवाब गलत आएगा। रुपसुंदरी ने अपनी पसंद बता दी, लेकिन मैनासुन्दरी ने कहा कि पिता को यह सवाल नहीं पूछना चाहिए, और बेटी को भी इसका जवाब नहीं देना चाहिए। आप जिससे भी मेरी शादी कराएंगे, मैं सुखी रहूंगी। राजा ने कहा कि मैं तुम्हे सुखी करना चाहता है, मैनासुन्दरी ने कहा कि सुखी या दुखी रहना मेरे हाथों में है, यह मेरी जिम्मेदारी है। यह उत्तर सुनकर राजा प्रजापाल तिलमिला गया, उसे लगा कि बेटी मुझे चुनौती दे रही है। मंत्री ने देखा कि विवाद बढ़ रहा है तो उसने बीच बचाव करते हुए कहा कि बड़ों को बच्चों के साथ बहस नहीं करनी चाहिए, बच्चों को बड़ों की बात नहीं काटनी चाहिए। बड़े कुछ बोलें तो उसे स्वीकार करना बच्चों का कर्त्तव्य है, अगर आप सहमत नहीं है तो बाद में विनती करें। मंत्री ने राजा से कहा कि चलिए हम बाहर से घूमकर आते हैं। राजा तो चला गया लेकिन उसके मन में अब भी बात खटक रही थी। दोनों ने घूमते-घूमते कुष्ठ रोगियों के दल को देखा। उन्होंने देखा कि दल के बीच में एक युवक तनकर बैठा है, ऊपर छत्र लगा है, और बाकी रोगी उसकी सेवा में लगे हैं।  उन्होंने पूछा कि ये कौन है? पता चला कि युवक राजा का बेटा है, और उसका नाम श्रीपाल है। यह सुनकर राजा के चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान आ गई। उसने कहा कि मैनासुन्दरी की शादी श्रीपाल से होगी। अहंकार की आग में वह अँधा हो गया था। यह समाचार पूरी नगरी में फ़ैल गया कि मैनासुन्दरी का विवाह एक कुष्ठ रोगी से होने जा रहा है। लेकिन मैनासुन्दरी को कोई फर्क नहीं पड़ा। वह चाहती तो अपने पिता से माफ़ी मांग सकती थी, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया । रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने बताया कि श्रीपाल-मैनासुन्दरी का प्रसंग 23 अक्टूबर तक चलेगा। इसके बाद 24 अक्टूबर से 14 नवंबर तक उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना होगी जिसमे भगवान महावीर के अंतिम वचनों का पाठ होगा। यह आराधना प्रातः 7.30 से 9.30 बजे तक चलेगी। उन्होंने सकल जैन समाज को इस आराधना में शामिल होने का आग्रह किया है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here