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मिडिल क्‍लास के लिए छिड़ी बहस, कॉरपोरेट से ज्‍यादा टैक्‍स भरता है आम आदमी, ऊपर से जीएसटी की मार

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मिडिल क्‍लास का दर्द अब सरकार के लिए भी सिर दर्द बनता जा रहा है. यही वजह है कि अब मिडिल क्‍लास को राहत देने की बहस तेज हो गई है. कयास भी लगाए जाने लगे हैं कि इस बार के बजट में मिडिल क्‍लास को बड़ा तोहफा दिया जा सकता है. मिडिल क्‍लास को लेकर यह बहस उन आंकड़ों के बाद छिड़ी है, जिसमें भारत की विकास दर 6 फीसदी से नीचे आने की बात कही गई थी. इसमें गिरावट की वजह भी मिडिल क्‍लास की घटती खपत को बताया गया था, जिसके बाद यह बहस तेज हो गई कि सरकार को मिडिल क्‍लास को ज्‍यादा राहत देनी चाहिए, जबकि इसकी भरपाई कॉरपोरेट जगत से होनी चाहिए.

अर्थव्‍यवस्‍था के लिहाज से देखें तो उद्योगपतियों और कॉरपोरेट्स का आर्थिक विकास में बड़ा योगदान रहता है, लेकिन एक हालिया रिपोर्ट यह भी बताती है कि कॉरपोरेट जगत ने मिडिल क्‍लास को परेशानी में डालना शुरू कर दिया है. करोड़ों का मुनाफा कमाने वाले कॉरपोरेट जगत आम आदमी से कम टैक्‍स का भुगतान करता है और उसे सैलरी भी कम देता है. यही वजह है कि पिछले दिनों देश के मुख्‍य आर्थिक सलाहकार ने भी कॉरपोरेट जगत के इस रवैये को लेकर चिंता जाहिर की थी.

3 तरह से कॉरपोरेट जगह लगा रहा पलीता
कॉरपोरेट जगत को सरकार ने कई तरह की छूट दी जिसका फायदा तो खूब उठाया लेकिन अब देश के विकास को 3 तरह से पलीता लगा रहे हैं. पहला तो कॉरपोरेट जगत बंपर मुनाफे के बावजूद अपने कर्मचारियों की सैलरी नहीं बढ़ा रहे. दूसरा, व्‍यक्तिगत टैक्‍सपेयर्स के मुकाबले वह कम टैक्‍स का भुगतान कर रहे हैं और तीसरा, प्रॉफिट होने के बावजूद रोजगार का सृजन नहीं कर रहे, बल्कि कर्मचारियों पर ही काम का दबाव बढ़ाते जा रहे.

रिपोर्ट में खुलासा किया था कि कॉरपोरेट जगत का मुनाफा 15 साल के उच्‍चतम स्‍तर पर पहुंच गया है. बावजूद इसके मिडिल क्‍लास से कॉरपोरेट जगत से ज्‍यादा टैक्‍स वसूला जा रहा. महंगाई और लोन की ब्‍याज दरें बढ़ने के बावजूद उनकी सैलरी में औसतन 1 फीसदी से भी कम का इजाफा किया गया है. यही वजह है कि पिछली 5 तिमाहियों में देश की उपभोक्‍ता खपत गिरती जा रही है. यह इसलिए चिंताजनक स्थिति है, क्‍योंकि भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था उपभोक्‍ता आधारित है. जीडीपी में निजी खपत की हिस्‍सेदारी 60 फीसदी के आसपास है.

ज्‍यादा इनकम टैक्‍स ऊपर से जीएसटी की मार
मिडिल क्‍लास और कॉरपोरेट जगत के बीच का अंतर आप ऐसे भी समझ सकते हैं कि चालू वित्‍तवर्ष 2024-25 में व्‍यक्तिगत करदाताओं ने कंपनियों से ज्‍यादा इनकम टैक्‍स भरा. इतना ही नहीं उन पर जीएसटी की भी मार पड़ी, जबकि कॉरपोरेट को इससे छूट रहती है. आंकड़े देखें तो चालू वित्‍तवर्ष में व्‍यक्तिगत इनकम टैक्‍स बजट अनुमान के अनुसार, 11.56 लाख करोड़ रुपये वसूला जाएगा, जबकि कॉरपोरेट से महज 10.42 लाख करोड़ रुपये का टैक्‍स वसूले जाने का अनुमान है. ऊपर से आम आदमी को अपनी जरूरत की वस्‍तुओं पर 28 फीसदी तक जीएसटी भी देना पड़ता है.