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वसीयत रजिस्‍टर्ड कराना ही काफी नहीं… सुप्रीम कोर्ट ने विल को देकर दिया अहम फैसला

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वसीयत को लेकर दिए गए अपने एक अहम फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वसीयत को केवल इसे पंजीकृत होने से ही वैध नहीं माना जा सकता. वसीयत की वैधता और इसे तामील किए जाने का सबूत भी होना चाहिए. उच्‍चतम न्‍यायालय ने कहा कि वसीयत की वैधता और एग्‍जेक्‍युशन को साबित करने के लिए इसे भारतीय उत्‍तराधिकार अधिनियम की धारा 63 और भारतीय साक्ष्‍य अधिनियम की धारा 68 के प्रावधानों के अनुसार प्रमाणित करना अनिवार्य है. धारा-63 वसीयत के इग्‍जेक्‍युशन से संबंधित है जबकि धारा-68 दस्‍तावेज के इग्‍जेक्‍युशन से जुडी हुई है. कोर्ट ने कहा कि धारा-68 के तहत वसीयत के इग्‍जेक्‍युशन को साबित करने के लिए कम से कम एक गवाह का परीक्षण जरूरी है.

लीला एवं अन्य बनाम मुरुगनंथम एवं अन्य के वाद का निपटारा करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह अहम फैसला सुनाया है. इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि वसीयत को वैध साबित करने के लिए सिर्फ इसका रजिस्‍ट्रेशन होना ही पर्याप्‍त नहीं है. वैध साबित करने के लिए कम से कम एक विश्‍वसनीय गवाह जरूर होना चाहिए . वसीयत के इग्‍जेक्‍युशन को सिद्ध करने के लिए गवाहों की गवाही महत्‍वपूर्ण है.

यह था मामला
मामला बालासुब्रमणिया तंथिरियार (वसीयतकर्ता) द्वारा संपत्ति के विभाजन से संबंधित था. वसीयतकर्ता ने एक वसीयत के माध्‍यम से अपनी पूरी संपत्ति को चार भागों में बांटा था. तीन हिस्से पहली पत्नी और उसके बच्चों को दिए गए थे. विवाद का मुख्य कारण वसीयत की वैधता थी. निचली अदालत और उच्च न्यायालय संपत्ति पर वसीयत के आधार पर अपीलकर्ताओं के दावे को खारिज कर दिया था और वसीयत को संदिग्‍ध माना था. इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. सुप्रीम कोर्ट ने भी माना कि वसीयत की वैधता और प्रामाणिकता को साबित करने के लिए साक्ष्य अपर्याप्त थे. अदालत ने कहा कि अपीलकर्ता यह साबित करने में असफल रहे कि वसीयतकर्ता ने वसीयत में जो कुछ लिखा है, उसे समझने के बाद ही वसीयत को निष्पादित किया था.

कोर्ट ने वसीयत को माना संदिग्‍ध
सुप्रीम कोर्ट ने वसीयत को संदिग्‍ध बताते हुए कहा कि एक तरफ तो वसीयत में कहा गया है कि वसीयतकर्ता पूरी तरह से होश में है और पूरे होशोहवास में वसीयत कर रहा है, तो दूसरी ओर वसीयत में ही लिखा गया है कि वह दिल की बीमारी से ग्रसित है और कई डॉक्‍टरों से इलाज करा रहा है. प्रतिवादी महिला ने माना कि उनके पति ने ये वसीयत निष्‍पादित की, लेकिन इसकी तैयारी में उनका कोई हाथ नहीं था. गवाह ने दावा किया कि नोटरी पब्लिक ने वसीयतकर्ता को वसीयत पढकर सुनाई, लेकिन इसका कोई सबूत वो पेश नहीं कर सके. इसी तरह गवाह भी वसीयतकर्ता का परिचित नहीं था.