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महंगाई से राहत! बीते सप्ताह खाने का तेल हुआ सस्ता, यहां चेक करें रेट्स

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महंगाई के दौर में रसोई घर से राहत भरी खबर आई है. खाने के तेल (Edible Oil) के भाव में गिरावट आई है. देश के बंदरगाह पर आयातित तेलों की लागत से कम दाम पर बिकवाली जारी रहने के बीच देश के तेल-तिलहन बाजारों में सभी खाद्य तेल तिलहनों के दाम हानि दर्शाते बंद हुए.

बाजार सूत्रों ने बताया कि बंदरगाहों पर आयातित तेलों का बेपड़ता कारोबार यानी लागत से कम दाम पर बिक्री जारी है. पिछले लगभग तीन महीनों से आयातक बैंकों में अपना लेटर ऑफ क्रेडिट (LC) घुमाते रहने की मजबूरी की वजह से आयातित खाद्य तेलों को लागत से 2-3 रुपये किलो कम दाम पर बेच रहे हैं. 3 महीनों से जारी इस बेपड़ता कारोबार की न तो तेल संगठनों ने और न ही सरकार ने कोई खोज खबर ली है.

सस्ते में ही बेचा जा रहा है आयातित तेल
इस निरंतर घाटे के सौदों के बीच आयातकों की आर्थिक दशा बिगड़ चुकी है. उनके पास इतना भी पैसा नहीं बचा कि वह आयातित खाद्यतेलों का स्टॉक जमा रख सकें और लाभ मिलने पर अपने स्टॉक को खपाएं. बैंकों में अपने एलसी को चलाते रहने की मजबूरी की वजह से आयातित तेल सस्ते में ही बंदरगाहों पर बेचा जा रहा है. बाजार सूत्रों ने पीटीआई को कहा कि इसके अलावा सरसों, सोयाबीन, कपास और मूंगफली जैसे तिलहनों की मंडियों में आवक कम हो रही है. मंडियों में तो सरसों, मूंगफली और सूरजमुखी तो एमएसपी से भी कम दाम पर बिक रहे हैं. माल होने के बावजूद पेराई का काम बेपड़ता होने यानी पेराई के बाद बेचने में नुकसान होने के कारण लगभग 60-70 प्रतिशत तेल पेराई की छोटी मिलें बंद हो चुकी हैं. बंदरगाहों पर भी साफ्ट तेलों का स्टॉक कम है और पाइपलाईन खाली है. दिसंबर में काफी संख्या में शादियों और जाड़े की मांग होगी. साफ्ट ऑयल का आयात भी घट रहा है. ऐसे में आने वाली मांग को पूरा करना एक गंभीर चुनौती बन सकता हे.

तिलहनों की बुआई का रकबा हुआ कम
सूत्रों ने कहा कि जो इंतजाम पहले से किया जाना चाहिए. उसकी ओर किसी के द्वारा ध्यान नहीं दिया जा रहा है. अगर नरम तेलों की निकट भविष्य में कोई दिक्कत आती है तो उसकी जवाबदेही किसकी होगी ? उन्होंने कहा कि सरकार के आंकड़ों से पता चलता है कि पहले के मुकाबले मूंगफली और सूरजमुखी जैसे तिलहनों की बुआई का रकबा कम हुआ है. पिछले साल 24 नवंबर तक मूंगफली की बिजाई 2.7 लाख हेक्टेयर में हुई थी और इस बार मूंगफली के बिजाई का रकबा 1.80 लाख हेक्टेयर ही है. इसी प्रकार पिछले साल सूरजमुखी 41,000 हेक्टेयर में बोई गई थी लेकिन इस बार इसकी बिजाई का रकबा 37,000 हेक्टेयर ही है. खरीफ मौसम में सूरजमुखी की बिजाई 66 प्रतिशत कम हुई थी और रबी में बिजाई के रकबे में 10 प्रतिशत की कमी आई है.

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