महंगाई के दौर में रसोई घर से राहत भरी खबर आई है. दरअसल, खाने के तेल (Edible Oil) के भाव में गिरावट आई है. बीते सप्ताह देशी तेल-तिलहनों के थोक दाम टूटते दिखे और इसके कारण देश की पेराई मिलों का संकट बढ़ गया है. दूसरी ओर, विदेशों में कच्चे पामतेल (CPO) के दाम में सुधार के बीच देश के तेल-तिलहन बाजारों में बीते सप्ताह सीपीओ और पामोलीन तेल की कीमतों में मजबूती रही. वहीं अन्य तेल-तिलहनों (सरसों, मूंगफली एवं सोयाबीन तेल-तिलहन और बिनौला तेल) के दाम गिरावट दर्शाते बंद हुए.
बाजार सूत्रों ने कहा कि सस्ते आयातित तेलों की भरमार के बीच देशी तेल-तिलहनों के दाम बेपड़ता (महंगा) हैं. ऐसे में देशी तिलहन की खरीद भी एमएसपी से कम दाम पर हो रही है. इन तिलहनों की पेराई करने में देशी तेल मिलों को नुकसान हो रहा है, क्योंकि ये पहले से आयातित तेलों के मुकाबले महंगा बैठते हैं और पेराई की अलग लागत बढ़ने के बाद इन तेलों के लिवाल नहीं हैं. इससे देश की खाद्य तेल पेराई मिलों ही हालत खराब हो रही है.
सूत्रों ने कहा कि पिछले सप्ताह कच्चे पामतेल का भाव 930 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 940-945 डॉलर प्रति टन होने की वजह से यहां बीते सप्ताह सीपीओ और पामोलीन के दाम में मजबूती आई. सीपीओ महंगा होने के कारण बेकरी कंपनियों द्वारा मंगाए जाने वाले सीपीओ का आयात प्रभावित हुआ है. दूसरी ओर जिस सोयाबीन डीगम का दाम 935-940 डॉलर प्रति टन था वह अब घटकर 920-925 डॉलर प्रति टन रह गया है. उन्होंने कहा कि सीपीओ के दाम में आई इस मजबूती की वजह से देश के बाजारों में बीते सप्ताह सीपीओ और पामोलीन तेल के दाम सुधार के साथ बंद हुए. दूसरी ओर सोयाबीन डीगम के दाम में गिरावट आने से देश में सोयाबीन तेल-तिलहन समेत बाकी देशी देशी तेल-तिलहन भी भारी दबाव में आ गए. मूंगफली तेल का दाम पहले से सस्ते आयातित तेलों के मुकाबले लगभग दोगुना है और इस वजह से कोई मूंगफली खरीद नहीं रहा, क्योंकि पेराई के बाद इसके तेल के लिवाल नहीं हैं.