अरुणाचल प्रदेश में लोहे की बेड़ियों में कैद जिंदगी से मुक्त 20 हाथियों को जल्द ही एक आजाद घर मिलने वाला है. उन्हें वनतारा लाया जा रहा है. वनतारा की स्थापना प्रसिद्ध समाजसेवी अनंत अंबानी ने की है. यह केंद्र अब रेस्कू किए गए 20 हाथियों का स्थायी घर बनेगा. इसमें 10 नर, 8 मादा, 1 उप-प्रौढ़ और 1 बच्चा शामिल है. इस रेस्कू ऑपरेशन को त्रिपुरा हाईकोर्ट द्वारा गठित उच्च-स्तरीय समिति की मंजूरी और सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर चलाया गया है. इसे हाथियों के मालिकों की पूरी सहमति भी प्राप्त है.
बचाए गए हाथियों में लक्ष्मी नामक 10 साल की उप-प्रौढ़ हाथी भी शामिल है, जो गहरे घावों के कारण अपनी पिछली टांगों पर खड़ा नहीं हो पा रही है. उसकी दाहिनी कान में एक दर्दनाक घाव भी है. माया एक 2 साल की बच्ची है. उसे उसकी मां रोंगमोटी के साथ बचाया गया था. लकड़ी कटाई के दौरान इसकी छाती पर गहरे घाव हो गए थे.
रामू एक नर हाथी है. उसके प्रजनन काल (4 से 6 महीने) के दौरान मजबूती से जंजीरों में बांध दिया गया था, जिससे उसे शारीरिक और मानसिक दोनों तरह का अत्याचार सहना पड़ा. बाबूलाल, एक और नर हाथी है, जिसे जंगली हाथियों के साथ संघर्ष में गंभीर चोटें आई है. इस परियोजना के तहत हाथियों को जीवनभर की देखभाल मिलेगी और इसके साथ ही वनतारा में मालिकों, महावतों और उनके परिवारों के लिए नए रोजगार के अवसर भी होंगे. महावतों और कर्मचारियों को हाथी प्रबंधन की वैज्ञानिक और मानवीय विधियों में गहन प्रशिक्षण दिया जाएगा. इससे उन्हें भविष्य में हाथियों की देखभाल करने के सही तरीके की जानकारी मिलेगी.
संस्था ने वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत सभी आवश्यक दस्तावेज प्राप्त किए हैं, जिसमें गुजरात वन विभाग से नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट और अरुणाचल प्रदेश वन विभाग से ट्रांसपोर्ट परमिट शामिल हैं. हाथियों को विशेष रूप से डिजाइन की गई एम्बुलेंस में सुरक्षित रूप से वनतारा लाया जाएगा.
लकड़ी कटाई उद्योग में हाथियों की स्थिति
लकड़ी कटाई उद्योग में हाथियों को भारी लकड़ी ढोने और घंटों तक काम करने के लिए मजबूर किया जाता है. इस दौरान उन्हें शारीरिक चोटें, कुपोषण, गठिया और चिकित्सा देखभाल की कमी का सामना करना पड़ता है. वे हमेशा जंजीरों में बंधे रहते हैं, जिससे उनकी स्वाभाविक गतिविधियां रुक जाती हैं और मानसिक आघात का सामना करना पड़ता है. इस वजह से वे सिर हिलाने, झूलने और चक्कर लगाने जैसे व्यवहार करने लगते हैं.
2020 में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार अरुणाचल प्रदेश में निजी स्वामित्व वाले हाथी बंदीगृहों में पाले जाते हैं, और इनका उपयोग जंगलों के पास किया जाता था. लेकिन लकड़ी कटाई पर प्रतिबंध के बाद इन हाथियों का उपयोग कम हो गया है. नमसाई के डिवीजनल फॉरेस्ट ऑफिसर श्री तबांग जामो ने बताया कि अरुणाचल प्रदेश में लगभग 200 बंदी हाथी हैं. उनकी स्वास्थ्य और कल्याण की निगरानी के लिए डीएनए प्रोफाइलिंग की जा रही है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त समिति के निर्देशानुसार 20 हाथियों का वनतारा में स्थानांतरण इन जानवरों के लिए एक उज्ज्वल भविष्य सुनिश्चित करता है.
इटानगर बायोलॉजिकल पार्क के पशु चिकित्सक डॉ. सॉरंग तादाप ने कहा कि बंदी हाथी अक्सर गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से जूझते हैं, जैसे चोटें, गठिया और मानसिक आघात, जो उनके कठोर श्रम, ट्रेनिंग और लंबे समय तक जंजीरों में बंधे होने के कारण होते हैं. यह देखना अच्छा है कि वनतारा जैसे केंद्रों में इन हाथियों को उन्नत चिकित्सा उपचार और जीवनभर की देखभाल मिल रही है.
हाथी के मालिक चौ थामासला मेन ने कहा कि लकड़ी कटाई पर प्रतिबंध लगने के बाद हम अब अपने हाथियों से श्रम नहीं कराना चाहते. हम खुश हैं कि अब ये हाथी वनतारा में देखभाल के साथ अपना जीवन बिताएंगे. इस पहल से हमारे परिवारों के लिए स्थिर रोजगार और आय के अवसर भी मिलेंगे, जिससे हमारे बच्चों का भविष्य सुरक्षित होगा. वनतारा में इन हाथियों को एक शांत और स्वतंत्र जीवन मिलेगा.