भारत की अर्थव्यवस्था लगातार बढ़िया प्रदर्शन कर रही है. अभी जब दुनिया भर में आर्थिक वृद्धि की रफ्तार सुस्त है, भारत तेज गति से तरक्की कर रहा है. आईएमएफ समेत कई एजेंसियों ने भारत को ग्लोबल ग्रोथ का इंजन बताया है. हालांकि इन सब अच्छी खबरों के बीच आईएमएफ ने एक खतरनाक ट्रेंड की तरफ इशारा किया है और भारत को सचेत किया है. आईएमएफ का यह इशारा है जीडीपी पर कसते कर्ज के शिकंजे की तरफ.
आईएमएफ ने इस बात पर किया सचेत
आईएमएफ ने हाल ही में एक रिपोर्ट में भारत के कर्ज के बारे में जानकारी दी. बिजनेस स्टैंडर्ड में इस सप्ताह छपी एक खबर में बताया गया कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भारत को कर्ज के बारे में आगाह किया है. आईएमएफ को अंदेशा है कि मीडियम टर्म में भारत का सरकारी कर्ज बढ़कर ऐसे स्तर पर पहुंच सकता है, जो देश की जीडीपी से ज्यादा हो सकता है. मतलब कुल सरकारी कर्ज देश की जीडीपी के 100 फीसदी से ज्यादा हो सकता है.
क्या कहते हैं कर्ज के आंकड़ें
हालांकि आंकड़ों को देखें तो कुछ और कहानी सामने आती है. भारत का डेट-टू-जीडीपी रेशियो करीब दो दशक से 80 फीसदी के आस-पास है. वित्त वर्ष 2005-06 में यह अनुपात 81 फीसदी था, यानी उस समय कुल सरकारी कर्ज जीडीपी के 81 फीसदी के बराबर था. बीच में यह अनुपात बढ़ा और 2021-22 में 84 फीसदी पर पहुंच गया. हालांकि उसके बाद फिर से 2022-23 में यह अनुपात कम होकर 81 फीसदी पर आ गया. यानी अभी कुल कर्ज देश की जीडीपी के 81 फीसदी के बराबर है और यही स्तर 2005-06 में भी था.
बढ़ाया मध्यम अवधि में ग्रोथ का अनुमान
आर्थिक वृद्धि के मोर्चे पर आईएमएफ का कहना है कि भारत के लिए जोखिम बैलेंस्ड हैं. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने इसके साथ ही मध्यम अवधि में भारत की वृद्धि दर के अनुमान को 6 फीसदी से बढ़ाकर 6.3 फीसदी कर दिया. इसके लिए एजेंसी ने उम्मीद से ज्यादा पूंजीगत खर्च और रोजगार के मामले में बेहतर स्थिति को कारण बताया है.
भारतीय अर्थव्यवस्था की चुनौतियां
बाहरी मोर्चे पर भारत को ग्लोबल स्लोडाउन से निकट भविष्य में कुछ दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है. ग्लोबल सप्लाई चेन में व्यवधान से कमॉडिटीज की कीमतें वोलेटाइल हो सकती हैं, जिससे भारत के ऊपर राजकोषीय दबाव बढ़ सकता है. घरेलू मोर्चे पर मौसमी कारणों से महंगाई फिर से सिर उठा सकती है. इसके चलते देश को फूड एक्सपोर्ट पर पाबंदियों का सहारा लेना पड़ सकता है. दूसरी ओर उम्मीद से बेहतर उपभोक्ता मांग और निजी निवेश से आर्थिक वृद्धि दर को समर्थन मिलने की उम्मीद है.