आम इंसान सरकारी बैंकों पर आंख मूंदकर भरोसा करते हैं. वे बेफिक्र होकर इन बैंकों में अपनी गाढ़ी कमाई जमा करते हैं. लेकिन, अब स्थितियां बदल गई हैं. बीते कुछ सालों में सरकारी बैंकों से जुड़े नियमों में काफी बदलाव हुआ है. यह निजीकरण का दौर है और सरकार इन सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में अपनी हिस्सेदारी लगातार कम कर रही है. उसने बीते कुछ सालों में कई सरकारी बैंकों को बंद कर दिया है. कई अन्य सरकारी बैंकों का आपस में विलय कर दिया है. ऐसे में आपके लिए यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि कौन सा सरकारी बैंक सबसे सुरक्षित है.
दरअसल, देश में दो तरह के सरकारी बैंक हैं. एक एसबीआई और दूसरा सार्वजनिक क्षेत्र के अन्य बैंक. इसमें सबसे मूल अंतर यह है कि एसबीआई की स्थापना स्टेट बैंक ऑफ इंडिया एक्ट 1955 के तहत हुई है. उससे पहले इसे इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया कहा जाता था. इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया की स्थापान ब्रिटिश शासन ने 1806 में हुई थी. आजादी के बाद 1955 में इसी इंपीरियल बैंक को स्टेट बैंक ऑफ इंडिया बना दिया गया. जबकि सार्वजनिक क्षेत्र के अन्य बैंकों का अधिग्रहण किया गया था. इन्हें बैंकिंग कंपनीज (अधिकग्रहण और कंपनी का हस्तांतरण) कानून 1970 और 1980 के तहत बनाया गया है. इन दोनों कानूनों के तहत उस समय मौजूद निजी बैंकों का भारत सरकार ने अधिग्रहण कर लिया था. हालांकि ये तकनीकी अंतर है, लेकिन कामकाज और विश्वसनीयता के मामले में ये सभी बैंक करीब-करीब बराबर हैं.
उदारीकरण के बाद बदले नियम
इसके बाद देश में 1991 में उदारीकरण की प्रक्रिया शुरू होने के बाद 1994 में बैंकिंग कंपनीज एक्ट में बड़ा बदलाव किया गया. कानून में इस संशोधन से पहले सार्वजनिक क्षेत्र के इन सभी बैंकों में सरकार की हिस्सेदारी 100 फीसदी थी. 1994 में कानून में संशोधन के बाद इन सभी बैंकों में न्यूनतम हिस्सेदारी घटाकर 51 फीसदी कर दिया गया. फिर सरकार इसी से हिसाब से अपनी हिस्सेदारी घटाने लगी. दूसरी तरह एसबीआई है. इससे जुड़े 1955 के कानून के मुताबिक इस बैंक में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की हिस्सेदारी 55 फीसदी से कम नहीं हो सकती. एसबीआई पूरे देश में आरबीआई के एजेंट के रूप में काम करता है.