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भारत के बैंकों की सेहत में तेजी से सुधार, FY25 में NPA घटकर 2.1% पर आने का अनुमान

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कुछ समय पहले इंडियन बैंकिंग सिस्टम के सामने सबसे बड़ी चुनौती नॉन परफॉर्मिंग एसेट या एनपीए (NPA) की थी. हालांकि, अब बैंकों की असेट क्वॉलिटी में तेजी से सुधार हो रहा है. इंडियन बैंकिंग सिस्टम की ग्रॉस एनपीए (GNPA) अगले वित्त वर्ष 2024-25 के अंत तक घटकर 2.1 फीसदी के स्तर पर आ सकती हैं. घरेलू रेटिंग एजेंसी केयर रेटिंग्स (Care Ratings) की रिपोर्ट में यह अनुमान जताया गया है.

वित्त वर्ष 2023-24 में जीएनपीए 2.5-2.7 फीसदी पर रहने की संभावना है. रिपोर्ट कहती है कि वित्त वर्ष 2024-25 के अंत तक इसमें सुधार होगा और बैंकिंग सिस्टम का कुल एनपीए घटकर 2.1-2.4 फीसदी रह जाएगा. रिपोर्ट के अनुसार, 2015-16 की एक्यूआर प्रक्रिया के कारण वित्त वर्ष 20213-14 में जीएनपीए 3.8 फीसदी से बढ़कर वित्त वर्ष 2017-2018 में 11.2 फीसदी हो गया, जिसने बैंकों को एनपीए को पहचानने और अनावश्यक पुनर्गठन को कम करने के लिए प्रेरित किया.

ग्रॉस एनपीए में वित्त वर्ष 2018-19 से सुधार देखा जा रहा
रिपोर्ट में कहा गया कि जीएनपीए में वित्त वर्ष 2018-19 से सुधार देखा जा रहा है और वित्त वर्ष 2022-23 में यह एक दशक के निचले स्तर 3.9 फीसदी आ गया. वित्त वर्ष 2023-24 की दिसंबर तिमाही में यह 3 फीसदी था.

एग्री और इंडस्ट्रियल GNPA में भी अच्छा सुधार
इसमें कहा गया कि खराब कर्ज की रिकवरी, बैंकों द्वारा हायर राइट-ऑफ की वजह से असेट की क्वॉलिटी में सुधार हुआ है. क्षेत्रीय दृष्टिकोण से, एग्रीकल्चर सेक्टर का जीएनपीए अनुपात मार्च, 2020 में दर्ज 10.1 फीसदी की तुलना में सितंबर, 2023 में घटकर 7 फीसदी पर आ गया, जबकि इंडस्ट्रियल सेक्टर ने मार्च 2020 में 14.1 फीसदी के मुकाबले सितंबर, 2023 में 4.2 फीसदी जीएनपीए अनुपात दर्ज किया. यह मार्च, 2018 में 22.8 फीसदी था.

बैंकों का NPA मतलब क्या?
जब भी बैंकों को हुए नुकसान की बात आती है तो आपने एनपीए के बारे में जरूर सुना होगा. सीधे शब्दों में कहें तो एनपीए का अर्थ होता है फंसा हुआ कर्ज यानी बैंकों पर डूबा हुआ लोन. जब कोई बैंक से लोन लेता है और उसे चुका नहीं पाता तो बैंकों द्वारा दी गई लोन की राशि फंस जाती है. एनपीए बढ़ना किसी बैंक की सेहत के लिए अच्छा नहीं माना जाता.

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