भारत में सोलर एनर्जी बिजली उत्पादन का सबसे बेहतर विकल्प बन सकती है. देश में 25 करोड़ से अधिक घरों की छतों पर 637 गीगावॉट रूफटॉप सोलर स्थापित करने की क्षमता मौजूद है. दिलचस्प बात है कि इसकी एक-तिहाई क्षमता से भारत अपनी कुल आवासीय बिजली मांग (लगभग 310 टेरावाट ऑवर्स) को पूरा कर सकता है. यह जानकारी काउंसिल ऑन एनर्जी, इनवायनरमेंट एंड वॉटर के एक हालिया अध्ययन से सामने आई है. इस स्टडी को गुरुवार को नई दिल्ली में आयोजित नेशनल डॉयलॉग ऑन रूफटॉप सोलर में जारी किया गया है.0
स्टडी के अनुसार आवासीय क्षेत्र में बिजली की मौजूदा खपत के आधार पर तकनीकी क्षमता घटकर सिर्फ 20 प्रतिशत (118 गीगावॉट) रह जाती है. चूंकि, ज्यादातर आवासीय बिजली उपभोक्ता कम खपत की श्रेणी में आते हैं, इसलिए तकनीकी रूप से संभव होने पर भी वित्तीय सहायता के बगैर उनके लिए सौर ऊर्जा आर्थिक रूप से व्यावहारिक नहीं हो सकती है. अगर किसी भी पूंजीगत सब्सिडी को न जोड़ें, जहां रूफटॉप सोलर के लिए निवेश को वापस पाने की अवधि पांच साल तक सीमित है और हम रूफटॉप सोलर को खरीदने की उपभोक्ताओं की इच्छा का भी आकलन करते हैं, तो यह क्षमता और ज्यादा घटकर 11 गीगावॉट हो जाती है.
हालांकि केंद्रीय नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय की पूंजीगत सब्सिडी के साथ यह क्षमता बढ़कर 32 गीगावॉट हो जाती है, जो सौर प्रणाली को ज्यादा उपभोक्ताओं के दायरे में लाती है. अभी भारत ने 11 गीगावॉट रूफटॉप सोलर क्षमता स्थापित की है, जिनमें से 2.7 गीगावॉट क्षमता आवासीय क्षेत्र में है.
ब्लूमबर्ग फिलैंथ्रोपीज समर्थित सीईईडब्ल्यू के इस अध्ययन ने 21 राज्यों में बॉटम-अप विश्लेषण किया है, जिसमें देश की 97 प्रतिशत आबादी शामिल है. इसके अनुसार, 60 फीसदी रूफटॉप सोलर क्षमता सिर्फ सात राज्यों, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, राजस्थान, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में केंद्रित है.
रूफटॉप सोलर अपनाना है बहुत जरूरी
इस बारे में नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय, आईआरटीएस, संयुक्त सचिव ललित बोहरा का कहना है कि अर्थव्यवस्था को डीकार्बोनाइज करने और भारत को 2070 तक अपने नेट-जीरो लक्ष्य तक पहुंचने में मदद करने के लिए रूफटॉप सोलर को अपनाने में तेजी लाना बहुत महत्वपूर्ण है. एमएनआरई अपने रणनीतिक हस्तक्षेपों के माध्यम से रूफटॉप सोलर क्षेत्र को सक्रियता के साथ प्रोत्साहित कर रहा है. हाल ही में घोषित डिस्ट्रीब्यूटेड रिन्यूएबल परचेज ऑब्लिगेशन से रूफटॉप सोलर क्षेत्र में मांग में तेजी आएगी. सीईईडब्ल्यू द्वारा नेशनल डॉयलॉग ऑन रूफटॉप सोलर का आयोजन और क्षमता संबंधी रिपोर्ट को जारी किया जाना, एक समयानुकूल हस्तक्षेप है जो भारत के ऊर्जा परिवर्तन में रूफटॉप सोलर को केंद्रीय भूमिका में लाने के लिए हितधारकों के बीच आम सहमति बनाने का काम करेगा.
घरों में सोलर पैनल लगना बहुत जरूरी
डॉ. अरुणाभा घोष, सीईओ, सीईईडब्ल्यू का कहना है कि भारत की सौर ऊर्जा क्रांति जो 2010 में 2,000 मेगावाट से बढ़कर अब 72,018 मेगावाट तक पहुंच चुकी है, को अपनी संपूर्ण क्षमता हासिल करने के लिए घरों तक पहुंचना होगा. ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों के परिवार न केवल स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में बदलाव, बल्कि बिजली तक पहुंच की एक बुनियादी जरूरत के पूरी होने की गारंटी के लिए अपना सकते हैं लेकिन वहां तक पहुंचने के लिए जरूरी है कि परिवारों को सही कीमत और आकर्षक प्रोत्साहन के साथ एक सुखद अनुभव मिले.
ब्लूमबर्ग फिलैंथ्रोपीज की जलवायु और पर्यावरण कार्यक्रम डायरेक्टर इंडिया प्रिया शंकर कहती हैं कि शहरी और ग्रामीण भारत दोनों ही क्षेत्रों में रूफटॉप सोलर क्षमता के लिए दरवाजे खोलना सतत विकास की दिशा में एक परिवर्तनकारी छलांग साबित हो सकता है.
रूफटॉप सोलर में गुजरात सबसे आगे
सीईईडब्ल्यू की रिपोर्ट के अनुसार, वित्तवर्ष 2020 में राष्ट्रीय स्तर पर रूफटॉप सोलर प्रणालियों के बारे में घरेलू उपभोक्ताओं के बीच जागरूकता का स्तर 50 प्रतिशत से भी कम था. अधिकांश राज्यों में जागरूकता का स्तर 30 से 50 प्रतिशत के बीच पाया गया. हालांकि, जब रूफटॉप सोलर लगाने की इच्छा की बात आई तो गुजरात के घरेलू उपभोक्ताओं ने 5 प्रतिशत के राष्ट्रीय औसत की तुलना में सबसे ज्यादा 13 प्रतिशत इच्छा जताई.